देवभूमि उत्तराखंड के हिमालय की गोद में अल्मोड़ा जिले के अभ्यंतर में
रानीखेत के उत्तर-पश्चिम में मात्र 25-30 कि. मी. की दूरी पर नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य से
भरपूर नौबाड़ा ग्रामसभा के अंतर्गत नैथना के पर्वत शिखर पर सदियों से लोगों की आस्था का प्रतीक
‘श्री नैथना देवी मंदिर’ स्थित है । ऐसी मान्यता है की दक्षयज्ञ में पिता के व्यवहार से कुपित माँ सती
द्वारा आत्मदाह किए जाने से अत्यंत क्रोधित सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करते हुए
भगवान शंकर के उग्र रूप को देखकर, देवताओं व ऋषीमुनियों की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु द्वारा
छोड़े गए सुदर्शनचक्र ने सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित किया। वे अंग एवं आभूषण आदि
जहाँ-जहाँ गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये। इनमें से एक श्री नैथना देवी (माँ भगवती) को भी
शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है|
सर्वरूप से व्याप्त माँ का यह स्थान कब से आलोकित था यह तो शायद ही कोई बता पाए लेकिन स्थानीय लोगों पर अपनी कृपा प्रदान
करने हेतु माँ किसी भी निमित्त से विग्रह के रूप में प्रकट होती हैं। लोककथा है कि जहां माँ का यह विग्रह स्थापित है वहां पर झाड़ियाँ
थी। अल्मोड़ा जिले में सोमेश्वर के पास चौड़ा नामक गांव का एक परिवार पलायन कर ग्राम गोहाड़ के पास आकर बस गया। इन लोगों के
एक भाई के मुनि हो जाने से इस गाँव का नाम मुनियाचौरा पड़ा जो आज तक प्रचलित है। छोटा भाई खेतीबाड़ी का काम करता था और गाय
भैंस पालता था, इस परिवार की एक गाय प्रतिदिन रात को नैथना देवी के इस विग्रह पर आकर खड़ी हो जाती थी और अपने समस्त दूध को
माँ के विग्रह पर चढ़ा देती थी, तदुपरांत घर लौट आती थी।गाय के मालिक को लगा कि शायद रात में कोई व्यक्ति दूध को दुह लेता है,...