श्री नैथना देवी मंदिर

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्राणताः स्म ताम् ।।

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
(जो माँ भगवती समस्त प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित है उनको बारंबार नमस्कार है ।)

सर्वरूप से व्याप्त माँ का यह स्थान कब से आलोकित था यह तो शायद ही कोई बता पाए लेकिन स्थानीय लोगों पर अपनी कृपा प्रदान करने हेतु माँ किसी भी निमित्त से विग्रह के रूप में प्रकट होती हैं। लोककथा है कि जहां माँ का यह विग्रह स्थापित है वहां पर झाड़ियाँ थी। अल्मोड़ा जिले में सोमेश्वर के पास चौड़ा नामक गांव का एक परिवार पलायन कर ग्राम गोहाड़ के पास आकर बस गया। इन लोगों के एक भाई के सन्यासी (मुनि) हो जाने से इस गाँव का नाम मुनियाचौरा पड़ा जो आज तक प्रचलित है। छोटा भाई खेतीबाड़ी का काम करता था और गाय भैंस पालता था, इस परिवार की एक गो माता (गाय) प्रतिदिन रात को माँ भगवती नैथना देवी के इस विग्रह पर आकर खड़ी हो जाती थी और अपने समस्त दूध को माँ के विग्रह पर चढ़ा देती थी, तदुपरांत घर लौट आती थी। जब सुबह गाय का मालिक दूध दुहाने जाता तो गाय दूध नहीं देती थी, मालिक को लगा कि शायद रात में कोई व्यक्ति दूध को दुह लेता है, इस रहस्य को जानने के लिए एक दिन वह छिपकर गौशाला में गाय पर नजर रखने लगा, उसने देखा कि अचानक आधी रात को गाय अपने खूँटे से खुलकर बाहर निकली और उत्तर दिशा की ओर पहाड़ी पर चली गई तथा प्रातःकाल से पहले ही वापस आकर अपने खूँटे से बंध गई। इस घटना से वह व्यक्ति विचलित हो गया, तदुपरांत उस व्यक्ति ने एक दिन हाथ में कुल्हाड़ी लेकर रात को गाय का पीछा किया। उसने देखा की गाय झाड़ियों में जाकर अपना दूध निखार रही थी, वह इस बात से अनभिज्ञ था की गाय अपने दूध से माँ भगवती के विग्रह का अभिषेक कर रही है। क्रोधित होकर उस व्यक्ति ने माँ के विग्रह पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया, जिसका निशान आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वह इतना भी विवेक नहीं कर पाया कि यह किसकी माया है, उसे तो साक्षात माँ भगवती के दर्शन मिल चुके थे, शायद प्रारब्ध ही ऐसा रहा होगा, उसी समय आकाशवाणी हुई कि तुमने यह ठीक नहीं किया इसका फल तुम्हें भोगना पड़ेगा। कहा भी गया है :-

अवश्यमेव भोक्तव्ययम् कृतं कर्म शुभाशुभम् ।
(किए गए शुभ और अशुभ कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा)

घटना से भयभीत होकर घर लौटकर उसने सारा विवरण अपने पुत्रों को बताया, वे भी यह सुनकर बहुत दुखी हुए और डरकर कालांतर में वहां से पलायन कर तीन-चार किलोमीटर दूर पहले चौड़ा गाँव में फिर नैला में जाकर बस गए लेकिन उनको शांति नहीं मिली। अनेक प्रकार के कष्टों दुखों, महामारियों, गरीबी और भयंकर व्याधियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अपने पूर्वजों के साथ घटी घटना से वहां के लोग भलीभाँति परिचित थे, ऐसी स्थिति में उन्होंने नैथना देवी की आराधना की और वचन दिया कि भविष्य में उनके गांव की नवप्रसूता गाय का पहला दूध और गांव की फसल के प्रथम अनाज का भोग माँ भगवती श्री नैथना देवी को अर्पित करेंगे। तब से लेकर आज तक यह परंपरा निर्वाध रूप से चल रही है वहां के लोग इस परम्परा का श्रद्धा पूर्वक पालन कर रहे हैं