देवभूमि उत्तराखंड के हिमालय की गोद में अल्मोड़ा जिले के अभ्यंतर में रानीखेत के उत्तर-पश्चिम में मात्र 25-30 कि. मी. की दूरी पर नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर नौबाड़ा ग्रामसभा के अंतर्गत नैथना के पर्वत शिखर पर सदियों से लोगों की आस्था का प्रतीक ‘श्री नैथना देवी मंदिर’ स्थित है । ऐसी मान्यता है की दक्षयज्ञ में पिता के व्यवहार से कुपित माँ सती द्वारा आत्मदाह किए जाने से अत्यंत क्रोधित सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करते हुए भगवान शंकर के उग्र रूप को देखकर, देवताओं व ऋषीमुनियों की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु द्वारा छोड़े गए सुदर्शनचक्र ने सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित किया। वे अंग एवं आभूषण आदि जहाँ-जहाँ गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये। इनमें से एक श्री नैथना देवी (माँ भगवती) को भी शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है| समुद्रतल से लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित माँ के इस मंदिर के पूर्व मे लगभग 3 - 4 किलोमीटर की गहराई में जहाँ भगवान आशुतोष, बागेश्वर के रूप मे विराजमान हैं वहीं पश्चिम में ठीक इतनी ही गहराई में लोगों की अपार श्रद्धा के प्रतीक भूमिया देवता लोगों के कष्ट दूर कर रहे हैं | इसके पूर्व दिशा में दुनागिरी (द्रोणागिरी) तथा पश्चिम दिशा में मानीला पर्वतमालाएँ हैं| दक्षिण दिशा हिमाच्छादित नंदादेवी शैल शृंखलाओं से सुशोभित है| उत्तरपूर्व दिशा में पर्वतराज हिमालय शोभा बढ़ा रहे हैं, जिसे देख कर महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘कुमारसंभव’ की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं -
मंदिर के चारों ओर चीड़,बांज,काफल आदि के पेड़ों से सुशोभित वन शोभा बढ़ा रहे हैं तो नीचे तलहटी में परमपावनी रामगंगा नदी अविरल बहती हुई माँ के चरणों को पखारती है। ऐसा रमणीय दृश्य किसी भी श्रद्धावनत व्यक्ति को अध्यात्म की गहराई तक ले जा सकता है। मौन एवं एकांत में आत्मनिरीक्षण के इच्छुक महानुभावों के लिए यह स्थान अत्यंत अनुकूल व सर्वोत्तम है। इसके सामने उत्तर पूर्व दिशा की तरफ मनोहारी सीढ़ीनुमा खेतों से सुसज्जित गांव हैं तथा पिछले कई दशकों से शिक्षा का केंद्र रहा उत्तमसाणी राजकीय इंटर कॉलेज भी है। यहां के जंगल मार्च-अप्रैल के महीनों में बुरांश के लाल फूलों से भर जाते हैं। अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर माँ के इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में लगभग 1930 के आसपास कुमाऊं के प्रख्यात संत स्वनामधन्य श्री हरनारायण स्वामी जी ने ग्राम वासियों के सहयोग से करवाया था जो आसपास एवं दूर-दराज के लोगों की अपार श्रद्धा का केंद्र है।