मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की संक्रांति जिसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं, को एक विशाल मेला लगता है, जो घी संक्रांति मेले के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें सुदूर गांवों से हजारों की संख्या में भक्त सुबह से ही पूजा पाठ और माँ के दर्शनों के लिए आते हैं और कीर्तन-भजन करते हैं और भक्तों का आना पुरे दिन चलता रहता है और फिर सभी लोग कुमाऊनी संस्कृति ( झोड़ा- चांचरी आदि कर) मेले का आनंद लेते हैं । रंगो के प्रसिद्ध त्यौहार होली के अवसर पर आसपास के गांव के लोग पहली होली में ढोल-नगाड़ों,निशान,तुरही (रणसिंह) आदि लेकर रंग-बिरंगी पोशाकें पहनकर टोलियों में मंदिर पहुंचते हैं और होली की परंपरागत गीत गाते हैं तथा माँ के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । ऐसी मान्यता है कि क्षेत्र में कदाचित भयंकर अकाल पड़ने और महीनों तक वर्षा नहीं होने पर आसपास के गाँवों के लोग रात को मंदिर में पौ भरने पहुँचते हैं और भजन कीर्तन करते हैं, अगली सुबह होते ही सभी भक्त नैथना गांव के नीचे गॊरखॊं का नॊला है जहाँ से शुद्ध जल लेकर भक्त देवी की मूर्ति का अभिषेक करते हैं और देवी को अक्षत-तिल, फूल आदि अर्पित करते हैं, इस अभिषेक का परिणाम यह होता है कि इलाके में वर्षा हो जाती है। अध्यात्म के साधकों के लिए यह स्थान अनेक अलौकिक सिद्धियों को प्राप्त करने का अनुपम स्थान है. यहां योग साधना करने वाले साधु-संतों को दिव्य ऊर्जा की अनुभूति होती है। मंदिर के गर्भ गृह में ध्यान-मग्न साधक को शक्ति का स्पंदन अनुभव होता है। मंदिर के चारों और सूक्ष्म तरंगों का महाकाश स्पष्ट महसूस होता है. स्वनाम धन्य संन्यासी श्री हरिनारायण स्वामी जी इन्हीं सूक्ष्म तरंगों से सदैव ओतप्रोत रहते थे। नौबाड़ा गांव के स्वर्गीय श्री नरसिंह रौतेला जी, जिनकी उम्र उस समय 85 वर्ष से अधिक थी ओर उनकी आंखों की दृष्टि चली गई थी इस ठंडे स्थान में निर्वस्त्र होकर माँ भगवती की आराधना की ठीक 1 वर्ष की तप्पस्या मैं ही माँ भगवती की कृपा से उनकी आँखों की ज्योति वापस आ गई । बाद में वह अच्छी तरह देख सकते थे । अध्यात्म के साधकों को कुछ कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। यही कारण है कि नौबाड़ा – नैथना ग्राम में चारपाई पर सोना आज भी प्रतिबंध है। सादा जीवन उच्च विचार से प्रेरित होकर जमीन पर ही सोने का नियम है। यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे आध्यात्मिक शांति ना मिली हो।
नैथना देवी शक्तिपीठ वैष्णवी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां शुद्ध सात्विक वैष्णव पद्धति से पूजा-अर्चना की जाती है। मांसाहार और बलि प्रथा एकदम निषेध है। यहाँ नैथना के पुजारी प्रातः कालीन और शायंकालीन पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के दिनों में यहां दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगी रहती है। मंदिर के गर्भ गृह के ठीक सामने भैरव जी तथा हनुमान जी के दो मंदिर हैं। मंदिर के पास ही यज्ञशाला है जो अभी अपने प्राचीन स्वरूप में ही स्थित है। मंदिर के चारों तरफ परिक्रमामार्ग में लटकी हजारों घंटियां इस बात की साक्षी हैं कि शुद्ध मनोभावों से देवीदर्शन करने वालों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।