महादेव मंदिर
नैथना देवी मंदिर के पूर्व की ओर लगभग 3 कि.मी.की गहराई में
पांडवकालीन प्रसिद्ध बागनाथ बागेश्वर महादेव का मंदिर है। यह जगह
बागेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है । बताया जाता है कि संत श्री बाबा अजय
नाथ जी ने इस स्थान पर भगवान शिव जी की साधना की थी और यहाँ
पर एक विशाल शिवलिंग हे जिसका रहस्य जानने की लिए बाबा जी ने
ग्राम वासियों के मदद से खुदाई करवाई लेकिन खुदाई करते समय वह
शिवलिंग और गहराई में जाता रहा। तदुपरांद बाबा जी ने खुदाई रुकवाई
और वहां मौजूद भक्तों को कहा की यह भगवान् शिव का साक्षात रूप है
ओर यहाँ पर महादेव का भव्य मंदिर बनवाया। आज भी यहाँ पर महंत श्री
अमावश गिरि जी महाराज पिछले 15-20 साल से साधनारत हैं। उनकी
उपस्थित मैं आज भगवान् शिव का यह स्थल जो बांज के घने जंगल के
बीच स्थित आध्यत्म की प्राप्ति के लिए बहुत ही पावन जगह है । यंहा पर
महाशिवरात्रि की शुभावसर पर वहाँ निवास कर रहे पूज्य संतों द्वारा
कथा-पुराणों का आयोजन भी होता रहता है।
गोरखों की गढ़ी (किला)
मंदिर के पास ही प्राचीन गोरखों की गढ़ी है जो अब खंडहर के रूप में हैं।
कहा जाता है कि यहां से दूरबीन से दिल्ली की कुतुबमीनार को देखा जा
सकता था। सन 1815 में गोरखों ने अंग्रेजों के साथ समझौता करके कुमाऊं
और गढ़वाल के कुछ क्षेत्र जो अंग्रजों ने उनको दिए थे उनमें से एक यह गढ़ी
भी थी। वर्तमान में इस गढ़ी का जीर्णोद्धार करने हेतु इसको पर्यटन स्थल
के रूप में विकसित करना वर्तमान श्री नैथना देवी मंदिर विकास सिमिति
का मुख्य उद्देश्य है। संस्था ने इस मामले को भारत सरकार और उत्तराखंड
सरकार के पर्यटन मंन्त्रालय के पत्राचार के द्वारा उठाया है।
उत्तमसाणी
नैथना मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर पूर्व की तरफ सुरम्य उत्तमसाणी पर्वत है जो चीड़,बांज व काफल के पेड़ों से घिरा हुआ है।
यहाँ पर स्थानीय
विद्या का केंद्र राजकीय इंटर कॉलेज है। ट्रेकिंग के लिए यह बहुत ही उत्तम
स्थान है।
पाली
मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में पाली नाम का स्थान है। यह स्थान किसी समय
इस क्षेत्र की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। यहां किसी समय में तहसील भी रही
थी, और यंहा का सरकारी नाम पाली पछाऊँ था जो आज पाली की नाम ।
यहां पर सन् 1900 में सबसे पहले अंग्रेजों ने मिडिल स्कूल की स्थापना की
थी। अब यहां पर इंटर कॉलेज है. यहां से नैथना पर्वत का नयनाभिराम
दृश्य दिखाई देता है।
मासी
नैथना पर्वत के मूल में रामगंगा के तटपर पर ‘मासी’ बसा हुआ है। यह
मोटर मार्ग द्वारा सभी स्थानों से जुड़ा हुआ है। रामगंगा के तट पर ही बसी
हुई सुरम्य उर्वरा गेवाड़घाटी है, जो कभी महाभारतकालीन विराट राजा के
अधीन थी। मंदिर से देखने पर यहां का दृश्य मनोहारी लगता है। लोक
प्रसिद्ध भूमिया मंदिर भी यहीं स्थित है, जहाँ प्रतिदिन दर्शनार्थियों की भीड़
लगी रहती है।
द्वाराहाट
नैथना मंदिर से लगभग 20-22 किलोमीटर की दूरी पर द्वाराहाट और
दूनागिरी नाम के स्थान है, जो मोटर मार्ग से जुड़े हुए हैं। द्वाराहाट में 12वीं
और 13वीं शताब्दी के 365 मंदिर एवं नौले हैं। प्रसिद्ध विद्वान पंडित
राहुल सांकृत्यायन इन मंदिरों का निरीक्षण करने हेतु सन् 1953 में यहां
आए थे, जब उनका ध्यान नैथना पर्वत पर स्थित गोरखों के एकमात्र
स्मारक गढ़ी की ओर गया तो वे इसे देखने के लिए बड़े उत्सुक हुए थे,
लेकिन किन्ही कारणों से वह वहां नहीं जा सके। इसी स्थान पर नैथना देवी
मंदिर के प्राचीन स्वरूप के संस्थापक संतशिरोमणि स्वामी हरिनारायण जी की समाधि भी है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य
यहां प्रातः कालीन उगते सूर्य की स्वर्णिम किरणे माँ के चरणों में प्रणाम
करती हैं तथा एक मनोहारी दृश्य उपस्थित करती हैं और सूर्यास्त के समय
भी ऐसा लगता है मानो सूर्य माँ से दूसरे दिन जल्दी आने का वादा करके
जा रहे हों। प्रकृति के इस अनुपम दृश्य को देखना जीवन की एक बड़ी
उपलब्धि एवं शुभ माना जाता है।